बुद्धि कहां मिल सकती है? और समझ का स्थान कहां है?
उसका मोल मनुष्य को मालूम नहीं, जीवनलोक में वह कहीं नहीं मिलती!
चोखे सोने देकर भी उसे मोल लिया नहीं जा सकता। और न उसके दाम के लिये चान्दी तौली जाती है।
न सोना, न कांच उसके बराबर ठहर सकता है, कुन्दन के गहने के बदले भी वह नहीं मिलती।
मूंगे उौर स्फटिकमणि की उसके आगे क्या चर्चा! बुद्धि का मोल माणिक से भी अधिक है।
फिर बुद्धि कहां मिल सकती है? और समझ का स्थान कहां?
वह सब प्राणियों की आंखों से छिपी है।
परन्तु परमेश्वर उसका मार्ग समझता है, और उसका स्थान उसको मालूम है।
प्रभु का भय मानना यही बुद्धि है: और बुराई से दूर रहना यही समझ है।
जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उस को पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं॥
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